चलो क़ुदरती और मानव सृजित चीजों से श्याही कैसे बनती है वो समझें। इस गाइड में फूल और पत्तिओ से श्याही बनानी की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है जिसका उपयोग आप आर्ट वर्क बनाने के लिए कर सकते हो।
गतिविधि संसाधन
जरूरी सामग्री
- फूल और पत्तिया
- निम्बू का रस
- नमक और बेकिंग सोडा
आयु वर्ग
यह गतिविधि 10 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लिए उपयुक्त या अनुशंसित है। हम १२ साल के काम उम्र के बच्चों को किसी घर के बड़े सदस्य की मौजूदगी मे ही रसोई उपकरणों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
फेसिलिटेशन टिप्स
- प्रतिभागिओ को गतिविधि का परिचय करवाने से पहले चर्चा कीजिए::
- रंग क्या है?
- उनके आसपास की कौन सी चीज़ें रंग दे सकती है?
- रोज़मर्रा की चीजें अलग अलग रंग की कैसे होती है?
- श्याही क्या होती है? श्याही रंग से कैसे अलग है?
- श्याही कौन सी चीज में से बनती है?
- कितने प्रकार की श्याही उपलब्ध है?
- वे रोज़मर्रा की चीजों में से प्राप्त रंग को श्याही बनाने में कैसे इस्तेमाल कर सकते है?
- इस तरह बनी हुई श्याही या रंगों से वे क्या करना चाहेंगे?
- गतिविधि का परिचय पीडीएफ में दी गई एक्टिविटी गाइड, डेमो वीडियो और वॉइस नोट्स के साथ कराएं।
प्रतिभागिओ को वीडियो में दिखाई गई प्रक्रिया को संदर्भ की तरह इस्तेमाल करने के लिए और अपने आसपास की कुदरती या कृत्रिम चीजें जैसे की हल्दी, कोफ़ी, चाय, मिट्टी, फल - सब्जी, आदि का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कीजिए। - प्रतिभागिओ को श्याही और रंग बनाने की प्रक्रिया को बाँटने के लिए प्रेरित कीजिए। उनसे पूछिए की उन्होंने श्याही या रंग बनाने के लिए कौन सी चीजों का इस्तेमाल किया और वो रंग निकलने के बाद कैसे बदल गईं।
- प्रतिभागिओ को श्याही या रंगों से टिंकर करने के लिए प्रेरित कीजिए। उनके साथ कलाकारी के कुछ नमूने बांटिए जैसे की निकिता गाँधी (स्व निर्मित कलाकार और शिक्षक) के द्वारा तैयार किये कुदरती रंगों की कलाकारी।
सहभागियों को फिजिकल या वर्चुअल स्पेस में मेकर गतिविधि को फेसिलिटेट करने के टिप्स और ट्रिक्स के लिए गाइड देखे।
प्रेरक कलाकार
निकिता गांधी भारत की एक स्व-सिखाया कलाकार और शिक्षिका हैं। वह प्राकृतिक रंगद्रव्य और रोजमर्रा की पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग करके कलाकृतियां विकसित करती है। वह बच्चों के लिए लर्निंग बाय डूइंग गतिविधियाँ में रुचि रखती हैं। उन्होंने कई स्कूलों और गैर सरकारी संगठनों में काम किया है और बच्चों को हमारे आस-पास की चीजों और कबाड़ से खिलौने बनाना सिखाया है। मरुदम स्कूल में अपनी पिछली नौकरी में, उन्होंने अरविंद गुप्ता और सुदर्शन खन्ना के खिलौना बनाने के विचारों के माध्यम से विशेष रूप से बच्चों के साथ काम किया।